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Take up one idea. Make that one idea your life - think of it, dream of it, live on that idea. Let the brain, muscles, nerves, every part of your body, be full of that idea, and just leave every other idea alone. This is the way to success.
Friday, 8 April 2022
6 Tips for Picking The Perfect Adwords Keyword
Google Adwords is a program where advertisers bid on certain keywords, and when someone searches for those keywords, the ad that the advertiser bids on pops up. It's important to pick the right keyword because once you set it, you can't make any changes. There are many considerations that go into picking the perfect keyword, such as deciding what your budget is and picking an appropriate long-tail keyword. Bullet Point: Advertising Paragraph: Advertising is all about creating a conversation between a product and a person or company who wants to buy said product. There are many different types of advertising available, including traditional commercials, websites with advertisements called adsense, social media ads like Facebook and Twitter, as well as ads in other places like newspapers and magazines. The best way to decide what type of advertising will work best for you is by asking yourself questions such as how much money you have to spend and how much time you have.
Sunday, 14 February 2021
संत एकनाथ महाराज जीवनी (1533-1599)
संत एकनाथ महाराज, संत ज्ञानेश्वर और संत नामदेव के काम के लिए आध्यात्मिक उत्तराधिकारी माने जाने वाले, महाराष्ट्र के एक महान संत थे। संत एकनाथ को उनकी आध्यात्मिक प्रगति के साथ-साथ लोगों को जगाने और धर्म की रक्षा के लिए उनके अपार प्रयासों के लिए जाना जाता था। संत एकनाथ ने भक्ति और अध्यात्म पर कई भजनों और पुस्तकों के लेखक, प्रसिद्ध एकनाथ भागवत, भगवद गीता के आध्यात्मिक सार और उनके मैग्नम ओपर्स भवरथ रामायण को शामिल किया है।
जन्म का उद्देश्य : महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर और संत नामदेव के समय, देवगिरि राजा श्री रामदेवराय यादव के अधीन एक समृद्ध और संतुष्ट राज्य था। दुर्भाग्य से राजा की मृत्यु के बाद देवगिरि मुस्लिम आक्रमणकारियों के हाथों में गिर गया। संत ज्ञानेश्वर और संत नामदेव द्वारा शुरू किया गया सुधारवादी और उत्थान कार्य बंद हो गया। युद्ध और विदेशी आक्रमणों ने लोगों के जीवन में भारी तबाही मचाई थी। लोग लक्ष्यहीन थे और आक्रमणकारियों के दास होने के नशे में इस्तीफा दे दिया। लगभग 200 वर्षों तक, यह जनता, राष्ट्र और धर्म की स्थिति थी, जब तक कि एक उज्ज्वल आत्मा ने जनता को जगाने के लिए जन्म नहीं लिया।
5 साल के एकनाथ गुरु की तलाश के लिए घर से निकलते हैं : छोटा एकनाथ गुरुचरित्र के महत्व से प्रभावित था। वह लगातार दूसरों से पूछ रहा था कि वह अपने गुरु से कैसे मिल सकता है। उसके आस-पास के विद्वान लोग चकरा गए और उसे गोदावरी नदी के बारे में पूछने के लिए कहा। इसलिए अगले दिन छोटे एकनाथ नदी में गए और बड़ी ही शिद्दत और तत्परता के साथ अपना प्रश्न पूछा। और असीम करुणामयी माँ ने उत्तर दिया! ‘आपका गुरु दौलताबाद के किले में इंतजार कर रहा है, थोड़ा एकनाथ को बताया गया था। वह तुरंत दौलताबाद के लिए घर से निकल गया!
गुरु शिष्य से मिलता है : जनार्दन स्वामी दौलताबाद के किले के प्रमुख थे। वह हर गुरुवार को छुट्टी पर जाता था। यह एक सौभाग्यशाली दिन था, जब 5 वर्षीय एकनाथ जो कि किले की सीढ़ियों पर चढ़ रहा था, जनादार स्वामी के सामने आया। जनार्दन स्वामी ने उस लड़के का स्वागत किया जिसका शब्द you मैं आपसे उम्मीद कर रहा हूं ’है। गुरु हमेशा इंतजार करता है और जानता है कि योग्य शिष्य कब आएगा। जनार्दन स्वामी ने पूजा की तैयारी का जिम्मा छोटे एकनाथ को सौंपा, जिन्होंने इसे बड़ी श्रद्धा के साथ निभाया, जिससे गुरु बहुत प्रसन्न हुए। जनार्दन स्वामी ने युवा एकनाथ को लिया
लोगों को जगाने में मदद करने के लिए जगदंबा माता के पास रोना : देवगिरि किला निज़ाम के शासन में था। पास में रहने वाले संत एकनाथ ने देखा कि लोग चुपचाप शासकों की ज्यादतियों का सामना कर रहे थे, जबकि उनके ग़ुलाम होने के भाग्य से इस्तीफ़ा दे दिया गया था। लोग जीवित थे क्योंकि वे पहले से ही मृत नहीं थे! संत एकनाथ ने फैसला किया कि उन्हें लोगों को जगाने के लिए एक जन आंदोलन शुरू करने की जरूरत है। उन्होंने कुलस्वामिनी जगदंबामाता से लोगों को जगाने के काम को प्रकट करने और आशीर्वाद देने के लिए ईमानदारी से प्रार्थना की।
दया तिचे नाव भूतांचे पालन ।
आणिक निर्दाळण कंटकांचे ।।
अर्थ: लोगों के लिए दया और करुणा |
अन्यायी के प्रति कठोर और उग्र ||
एक घातक दिन, जनार्दन स्वामी समाधि में गहरे थे, जब एक हमलावर सेना ने अलार्म उठाया। एकनाथ महाराज ने संकोच नहीं किया, एक लड़ाका नहीं होने के बावजूद, उसने कवच दान किया और आक्रमणकारियों से लड़ने के लिए बाहर निकल गया। उनके दिमाग में केवल एक ही विचार था, कि उनके गुरु जनार्दन स्वामी की समाधि अवस्था को परेशान न किया जाए। इसलिए एकनाथ महाराज ने 4 घंटे तक वीरतापूर्वक युद्ध किया और आक्रमणकारियों को भगा दिया।
एकनाथ महाराज की बहादुरी के लिए उनकी सराहना की गई। उन्होंने सिद्ध किया कि गुरु और शिष्य एक हैं! जनार्दन महाराज को इसकी कुछ भी जानकारी नहीं थी। जब स्वामीजी को यह पता चला तो उन्हें अपने शिष्य के लिए तृप्ति का अहसास हुआ। एकनाथ जी महाराज जैसे शिष्य जो गुरु और उनके शिष्य के बीच के अंतर को मिटा सकते हैं और गुरु का काम कर सकते हैं, ऐसा कहना अत्यंत दुर्लभ है।
संत एकनाथ भवार्थ रामायण लिखते हैं : भगवान राम के जीवन का ऐतिहासिक प्रतिपादन एकनाथ महाराज द्वारा 7 खंडों, 297 अध्यायों और लगभग 40000 श्लोक volume ओविस ’नामक एक खंड में लिखा गया था। एकनाथ महाराज ने राम के जीवन के आध्यात्मिक अर्थ को समझाने का प्रयास किया।
'अजा' परब्रह्म या परमात्मा है। इससे दशरथ या 10 इन्द्रिय अंग उत्पन्न हुए। राम के रूप में व्यक्तिगत स्व (आत्म) ने दशरथ के माध्यम से जन्म लिया। भगवान के अवतारों या अवतारों में देवताओं की इच्छाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने का प्राथमिक उद्देश्य था। दशरथ ने 3 क्वींस - कौशल्या को लाभकारी ज्ञान (सदविद्या) का प्रतीक, सुमित्रा ने शुद्ध ज्ञान (शुद्धबुद्धि) और कैकयी को अज्ञानता (अविद्या) का प्रतीक माना। कैकयी की नौकरानी मंथरा ने हानिकारक ज्ञान (कुविद्या) का प्रतीक रखा। राम द ब्लिसफुल के 3 भाई थे। लक्ष्मण का अर्थ है आत्म-ज्ञान (आत्मप्रबोध), भारत का अर्थ है भावुक (भावार्थ) और सतरुघ्न का अर्थ है आत्म समर्थन (निज-निर्धार)। तब फिर से विश्वामित्र का अर्थ होता है तर्कशक्ति (विवेक) और वसिष्ठ अर्थ विचारशील (विचार)। बाद के दो राम ने युद्ध की कला के साथ-साथ शास्त्र भी सीखे। राम और सीता भगवान और उनकी बुद्धि का प्रतीक हैं। उनकी एकता निरपेक्ष है। (भारतीय संस्कृति कोश ६, पृष्ठ ५०६)
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Saturday, 18 July 2020
स्वामी विवेकानंद सनातन मानवी धर्म संस्था धर्मजागृतीविषयक कार्य !
'स्वामी विवेकानंद सनातन मानवी धर्म संस्था ' ही ऋषीमुनी आणि संत-महंत यांनी धर्मशास्त्र हा आधारस्तंभ मानून समाज, राष्ट्र आणि धर्म यांच्या उन्नतीचा जो मार्ग दाखवला, त्यानुसार कार्य करणारी अग्रणी संस्था आहे. 'सनातन संस्थे'चा दृष्टीकोन केवळ व्यक्तीची पारमार्थिक उन्नती होण्यापुरता मर्यादित नाही. सनातनने व्यक्तीसह समाज, राष्ट्र आणि धर्म यांच्या उत्कर्षाला प्राधान्य दिले आहे. त्यासाठी अध्यात्मप्रसार करण्यासह समाजसाहाय्य, राष्ट्ररक्षण अन् धर्मजागृती यांविषयी 'सनातन संस्था' विविध उपक्रम राबवते. 'धर्मो रक्षति रक्षित: ।', म्हणजे जो धर्माचे पालन करतो, त्याचे रक्षण धर्म म्हणजे ईश्वर करतो. धर्माचाच नाश जर झाला, तर राष्ट्रावर संकट ओढविण्यास फार काळ लागणार नाही. समाजाची धर्माबद्दलची उदासीनता दूर करण्यासाठी, धर्माचा बुरखा पांघरून समाजात शिरलेल्या दुष्प्रवृत्ती रोखण्यासाठी, तसेच समाजाला खरा धर्म समजावून सांगण्यासाठी सनातन कार्यप्रवण झाले आहे.
हिंदु धर्मजागृती सभा, पाश्चात्यांचे अंधानुकरण टाळा, देवतांचा अवमान रोखा धर्मशिक्षणविषयक फलक प्रदर्शन उत्सवातील अपप्रकार रोखा, अंधश्रद्धा निर्मूलनासाठी प्रयत्न कुंभमेळ्यामध्ये धर्भजागृती देवालय स्वच्छता, जत्रा सुनियोजन, नद्या आणि तीर्थक्षेत्रे यांच्या पावित्र्य-रक्षणाविषयी जागृती.
भारतातील अध्यात्म क्षेत्रात सामाजिक सांस्कृतिक लोक जागरती संस्था.
. . . “श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् ! “
. . . “अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यं आत्मनिवेदनम् . !! “ ( नवविधा भक्ति )
” कीर्तन ” शब्दाचा उगम संस्कृत ” कीर्त ” (१० आ.) धातूपासून झाला आहे. प्रशंसा, गुणवर्णन , पराक्रम , लीलाचरित्र , स्तुतिपाठ करणे . अर्थात थोडक्यात सांगायचे तर परमेश्वराच्या चरित्राचे कथाकथन, दैवी गुणांचे आणि विभूतींच्या पराक्रमाचे कीर्तीगान किंवा कथाकथन म्हणजेच कीर्तन होय.
हरिकीर्तनाची परंपरा सर्व भारतात फार प्राचीन काळापासून आहे. गावा-गावातून पुराण, प्रवचन आणि कीर्तनाचे आयोजन फार पूर्वीपासून केले जाते. टाळ मृदुंगाच्या साथीत हरीनामा बरोबरच लोकशिक्षण आणि प्रबोधनाचे प्रभावी माध्यम म्हणून कीर्तन सर्वाना माहित आहेच. कीर्तनात नारदीय, वारकरी, रामदासी आणि राष्ट्रीय कीर्तन असे ठळक भेद मानले जात असले तरी कीर्तन हे मुळात ” अध्यात्म मार्गाचे एक साधन ” म्हणून आणि ” नवविधा भक्तीचा एक प्रकार ” म्हणून सर्वश्रुत आहे. पुराणातील आदर्श हरीभक्त आणि लोकप्रिय व्यक्तिमत्व असलेले देवर्षी नारद हेच कीर्तन परंपरेचे आद्य प्रवर्तक मानले जातात, इतकी ही कीर्तनाची जुनी पद्धती आहे. भारतात सर्व राज्यात कीर्तन परंपरा थोडयाफार फरकाने आहेच.महाराष्ट्रात कीर्तन, गुजरातेत संकीर्तन, उत्तरेत हरिकीर्तन , दक्षिणेत हरिकथा , आंध्रात कथाकली, तर पंजाबात गुरुद्वारात होणारे शबद-कीर्तन म्हणून कीर्तनच सादर होत असते. कथानके मुख्यतः पुराणे, रामायण, महाभारतावर व देशातील संत परंपरा आणि इतिहास यावर आधरित असतात.
Website : https://purandare.constantcontactsites.com/
Tuesday, 21 January 2020
शिवसमर्थ भेटीचे प्रेरणास्थान : संत तुकाराम
१६४५ साली शिवाजी महाराजांनी हिंदवी स्वराज्याच्या स्थापनेला भगवान शंकराच्या साक्षीने प्रारंभ केला. १६४८ सालापर्यंत महाराजांनी बरीच मुसंडी मारली व आदिलशाही मुलुखातले अनेक किल्ले जिंकून स्वराज्याला जोडले. शिवाजी महाराजांचे वडील शहाजी राजे आदिलशाहीत नोकरीला होते. एकेकाळचे आदिलशाहीतील त्यांचे मित्र बाजी घोरपडे व दियानात राव देशपांडे आता शहाजीचे शत्रू झाले होते. " शहाजी आपल्या पोराला फूस लावून नवे साम्राज्य निर्माण करतो आहे " अशी तक्रार या दोघांनी आदिलशहाजवळ केली व आदिलशहाने त्यांच्यावर शहजीस अटक करण्याची कामगिरी सोपवली. अफजुलखानाच्या मदतीने त्या दोघांनी शहाजी महाराजांना पकडले व आदिलशहाच्या ताब्यात दिले. शिवाजी महाराजांच्या बंडखोरीबद्दल आदिलशहाने त्यांना जाब विचारला. परंतु शहाजी महाराजांनी “ मुलगा माझे ऐकत नाही ” असे सांगून उपरणे झटकले. परंतु शहजींच्या उत्तराने आदिलशहाचे समाधान नाही झाले. त्यांनी शहाजी महाराजांना तुरुंगात टाकले व शिवाजीस पत्र टाकून विचारले, “ बोला, काय हवंय तुम्हाला ? हिंदवी स्वराज्य की आईचं सौभाग्य ? ”
या पत्रामुळे शवाजी महाराजांच्या सर्व राजकीय हालचाली एकदम ठप्प झाल्या. कारण सुलतानानं जिजाबाई लहान असताना त्यांचे वडील, काका व दोन भाऊ एकाच वेळी मारेकर्यांकडून मारले होते. या इस्लाम राज्यकर्त्यांचे क्रौर्य शिवाजी महाराज पुरेपूर जाणून होते. त्यांनी आपल्या कार्याला भगवंताचे अधिष्ठान असावे म्हणून संत तुकाराम महाराजांची भेट घ्यायचे ठरवले. ही घटना १६४८ सालच्या जून महिन्यात घडली व १६५० सालच्या जानेवारी महिन्यात संत तुकाराम महाराजांनी देह ठेवला. संत तुकाराम महाराजांचा पिंड मुळातच भाक्तीप्रवण होता. त्यांचा काळ निवृत्तीकडे होता. शिवाय आपला अंत:काल जवळ आल्याची त्यांना कल्पना होती. म्हणून त्यांनी शिवाजी महाराजांनी " समर्थ रामदासांची " कास धरावी अशी प्रेमाची सूचना त्यांनी शिवाजी महाराजांना केली. त्या वेळी समर्थांचे नाव महाराजांनी प्रथमच ऐकले. समर्थ कुठे राहतात, काय करतात, त्यांचा पोशाख कसा असतो असे विचारले तेव्हा संत तुकाराम महाराजांनी त्यांना " समर्थांचे " विस्तृत वर्णन सांगितले. तुकाराम महाराजांचे दोन अभंग असून पहिल्या अभंगात त्यांनी शिवाजी महाराजांना समर्थांचा अनुग्रह घेण्याचा सल्ला दिला आहे, तर दुसर्या अभंगात समर्थांचे वर्णन केले
आहे. हे दोन्ही अभंग मुद्दाम पुढे देत आहे.
संत तुकाराम महाराजांचा पहिला अभंग :-
राया छत्रपती ऎकावे वचन । रामदासी मन लावी वेगी ॥ १ ॥
रामदास स्वामी सोयरा सज्जन । त्यासी तनमन अर्पी बापा ॥ २ ॥
मारुति अवतार स्वामी प्रगटला । उपदेश केला तुजलागी ॥ ३ ॥
रामनाम मंत्रतारक केवळ । झालासे शीतळ उमाकांत ॥ ४ ॥
उफराटे नाम जपता वाल्मिक । झाला पुण्यश्लोक तात्कालिक ॥ ५ ॥
तोचि बीजमंत्र वसिष्ठ उपदेश । याहुनी विशेष काय आहे ॥ ६ ॥
आता धरु नको भलत्याचा संग । राम पांडुरंग कृपा करी ॥ ७ ॥
धरु नको आशा आमुची कृपाळा । रामदासी डोळा लावी आता ॥ ८ ॥
तुझी चाड आम्हा नाही छत्रपती । आम्हीं पत्रपती त्रैलोक्याचे ॥ ९ ॥
चारी दिंशा आम्हा भिक्षेचा अधिकार । नेमिली भाकर भक्षावया ॥ १० ॥
पांडुरंगी झाली आमुची हे भेती । हातात नरोटी दिली देवे ॥ ११ ॥
आता पडु नको आमुचिये काजा । पवित्र तू राजा रामभक्त ॥ १२ ॥
विठ्ठलाचे दास केवळ भिकारी । आम्हा कधी हरी उपेक्षीना ॥ १३ ॥
शरण असावे रामदासालागी । नमन साष्टांग घाली त्यासी ॥ १४ ॥
तुका म्हणे राया तुज असो कल्याण । सद्गुरुशरण राहे बापा ॥ १५ ॥
संत तुकाराम ...
संत तुकाराम महाराजांचा दुसरा अभंग :-
हुरमुजी रंगाचा उंच मोती दाणा
रामदासी बाणा या रंगाचा ।
पीतवर्ण कांती तेज अघटित
आवाळू शोभत भृकुटी माजी ॥ १ ॥
काष्टांच्या पादुका स्वामींच्या पायात
स्मरणी हातात तुळशीची ।
रामनाम मुद्रा द्वादश हे केले
पुच्छ कळवळी कटी माजी ॥ २ ॥
कौपिन परिधान मेखला खांद्यावरी
तुंबा कुबडी करी समर्थाच्या ।
कृष्णातटा काठी जाहले दर्शन
वंदिले चरण तुका म्हणे ॥ ३ ॥
संत तुकाराम ...
संत तुकाराम महाराजांनी सांगितल्यावर समर्थांच्या दर्शनाची शिवछत्रपतींना ओढ लागली होतीच. ते चाफळ जाऊन समर्थांना भेटणार होतेच. पण योगायोगाने त्यांचा मुक्काम वाईला होता. वाईमधील समर्थशिष्यांकडून ही बातमी चाफळला पोचली. मघाशी वर्णन केल्याप्रमाणे समर्थांनी शिवाजी महाराजांना पत्र पाठवले व शिवसमर्थ भेट झाली. या चरित्रात संत तुकाराम महाराजांचा उल्लेख समर्थांच्या एवढा येत नाही. याचे कारण संत तुकाराम महाराज फार लवकर सदेह वैकुंठाला गेले. त्या वेळी शाहिस्तेखानाचा पराभव या महत्वाच्या घटना तुकाराम महाराजान्नाच्या निर्याणानंतर ९-१० वर्षांनी घडल्या. याउलट समर्थ शिवाजी महाराजांच्या निर्याणानंतर पावणेदोन वर्षांनी समाधिस्त झाले. त्यामुळे संपूर्ण शिवचरित्राचे ते साक्षीदार बनले. १६५७ साली प्रतापगडावर छत्रपतींनी तुळजाभवानीची स्थापना केली तेव्हा समर्थांनी या देवीला साकडे घातले –
“ दुष्ट संव्हारिले मागे । ऐसे उदंड ऐकितो ।
परंतु रोकडे काही । मूळ सामर्थ्य दाखवी ॥
तुझा तू वाढवी राजा । शीघ्र आम्हाचि देखता ।
मागणे एकची आता । द्यावे ते मज कारणे ॥
रामदास म्हणे माझे । सर्व सातुर बोलणे ।
क्षमावे तुळ्जे माते । इच्छा पूर्णचि तू करी ॥ ”
शिवाजी महाराजांच्या हातात सत्ता यावी व त्यांच्या मस्तकावर हिंदवी स्वराज्याचे छत्र झळकावे याची समर्थांना किती ओढ लागली होती ते या प्रार्थनेत दिसून येते.
पुण्याच्या समर्थ व्यासपीठाच्या एका समारंभात प. पू. बाबा महाराज सातारकर म्हणाले,
तुकाराम आणि समर्थ रामदास हे शिवछत्रपतींचे दोन डोळे होते ही गोष्ट कधी नाकारता येणार नाही. "
जय जय रघुवीर समर्थ !!!
https://www.youtube.com/watch?v=PMalL0b6T8Q&feature=youtu.be&fbclid=IwAR2NZng4eq134O1dQWY6RG3pHabUqgh6U_RHNV8EHFFL8-aLD3dlvUACMiI
Monday, 9 December 2019
The relevance of Shri Vitthal (Vitthal Mahatmya)
Monday, 11 November 2019
Sant Namdev Maharaj
Background
Follows Bhakti Marg
Remembrance of God's Name central
Message of Unity for All
Bhagat Namdev thrown before a drunk elephant
|
Gurdwara and Temple
Temple in Pandharpur, where the Eastern
entrance is called Namdev Gate |
Profession of Chhimba
Gurdwara at Ghoman
|
Faith
Namdev's Bani
ध्यान (मेडीटेशन) आणि त्याचे फायदे...
निरनिराळ्या व्यवसायातील व्यक्तींच्या दिनक्रमाचा विचार केल्यास असे आढळते कि त्यांच्या कामाचे स्वरूप जरी वेगळे असले, काम करण्याची क्षमता ज...
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